यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
1- सायथियम ( Cyathium ) - इसमें सहपत्र चक्र बनता है । इस चक्र के सभी सहपत्र आपस में सम्मिलित होकर एक प्याले नुमा संरचना बना लेते हैं । इस संरचना के बीच में एक मादा पुष्प मिलता है जो वृंत पर लगा रहता है जो त्रिअण्पी (tricarpellary ) और युक्ताण्पी ( syncarpous ) होता है इस मादा पुष्प के चारों ओर नर पुष्प प्रत्येक सा पत्र के सामने एक वृश्चिकी ससीमाक्ष मे लगे रहते हैं केवल नर पुष्प में एक पुंकेसर पाया जाता है । सभी पुष्प सवृंती होते हैं । प्याले से बाहर की तरफ मकरंद ग्रन्थियां ( nectar gland ) मिलती हैं । यह पुष्पक्रम यूफोरया ( Euphorbia ) वंश का विशेष लक्षण है।
2 - कूट चक्रक ( Verticillaster ) - ये opposite पत्ते के कक्ष में संंघनित दो द्विसाखी ससीमाक्ष अथवा वृश्चिकी ससीमाक्ष होते है यह पुष्प क्रम लेबिएटी( Labiate ) कुल का विशिष्ट लक्षण है ।
3- हाइपैन्थोडियम ( Hypanthodium ) - इस पुष्पक्रम मे पुष्पासन मांसल होकर घडे़ के आकार का हो जाता है । इसके मुख पर एक छिद्र होता है जो रोम से ढका रहता है । खोखले पुष्पासन की अन्त: सतह पर पुष्प लगते है जिनमें मादा अथवा नर दोनो प्रकार के एकलिंगी पुष्प होते हैं । अधिकांशतः मादा पुष्प आधार की तरफ तथा नर पुष्प छिद्र की ओर होते हैं ।
No comments:
Post a Comment