Wednesday, 30 September 2020

पुष्प : एक परिचय ( भाग 8 )

    19 - वाह्यदलपुंज तथा दलपुंज में पुष्पदल विन्यास( Aestivation of calyx and corolla ) - 
   1- कोरस्पर्शी (Valvate) - चक्र के सभी दल अथवा वाह्यदल के किनारे आमने सामने होते हैं तथा एक दूसरे से जुडे होते हैं (Gamopetalous) अथवा अलग - अलग हो सकते हैं (polypetalous) ।
  2- संवलित ( Twisted or Convolate ) - जब दो सदस्यों के किनारे आमने सामने न होकर एक दूसरे को ढ़कते ( overlap ) हैं इस स्थिति को Twisted कहते हैं । 
   3- कोरच्छादी (Imbricate) - जब पुष्प दल विन्यास में एक पुष्प दल पूरी तरह से स्वतन्त्र तथा दूसरा पूरी तरह से ढका रहता है बाकी 3 सदस्य twisted अवस्था में होते हैं । ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं - 
   (क) आरोही कोरच्छादी ( Ascending Imbricate )- 
   पश्च ( posterior ) पुष्प दल पार्श्व दलों से ढ़का रहता है । 
   (ख) अवरोही कोरच्छादी (Decending Imbricate) - 
पश्च ( posterior ) पुष्प दल पार्श्व दलों को ढ़कता है ।
   (ग) क्युनकनसियल (Quincuncial ) - इसमें पुष्प दल के दो सदस्य बिना ढके तथा दो पूरी तरह से ढके रहते हैं । पांचवां twisted अवस्था में होता है । 
    
 

Saturday, 26 September 2020

पुष्प : एक परिचय ( भाग 7 )

18 - दल पुंज के विशेष आकार ( Special shapes of corolla ) - 
 (1) - क्रासित ( Cruciform ) - चार नखर दल ( clawed petals ) होते हैं इनमें दल फलक ( limb) तथा नखर (claw ) से समकोण बनाते है और cross form में होते हैं । Example - Crucifereae family के सदस्य । 
 (2) - गुलाबवत ् ( Rosaceous ) - दल अवृंत (sessile) होते हैं और फैले हुए चक्र में होते हैं । Example - Rosa ( गुलाब ) 
‌(3) - केरिओफिल्लेसियस ( Caryophyllaceous ) - दलपुंज के 5 नखरदल ( clawed petals ) एक चक्र मेंहोते हैं। Example - Dianthus ( डायन्थस ) । 
 (4) - मटर कुलीय (Papilionaceous) - दलपुंज में एक पश्च ध्वज (standard) दो पार्श्व दल (wing) तथा दो बहुत छोटे जुडे हुए अग्र पार्श्वीय दल (keel) मिलते हैं । Example - Pisum sativum (मटर) ।
 (5) - चक्राकार (Rotate) - सयुंक्तदली (gamopetalous) दलपुंज (corolla) चक्र के आकार में व्यवस्थित होता है । Examle - Solanum melongena (बैंगन) । 
  (6) - कीपाकार (funnel shaped or bell shaped) - इसमें दलपुंज (corolla) संयुक्त तथा कीप (funnel)के आकार का होता है। Example - Ipomoea (आइपोमिया)
  (7) घंटाकार ( Bell shaped ) दलपुंज घंटे (bell shaped) के आकार का होता है।
  (8) नलिकाकार (Tubular) - दलपुंज लम्बा पतला तथा नली के आकार का होता है । Example - Disc florets 
 (9) जिभिकाकार (Ligulate)- जब दलपुंज का निचला भाग छोटा व नलिकाकार होता है तथा ऊपर का भाग आगे से खुला व चपटा होता है जिभिकाकार कहलाता है । Example -  Ray florets (रश्मि पुष्पक) 
   (10) द्विओष्ठी (Bilabiate) - दलपुंज का ऊपरी भाग पश्च ओष्ठ (posterior lip) तथा निचला भाग अग्र ओष्ठ ( anterior lip) बनाता है  Example  Ocimum (तुलसी) , Salvia (साल्विया) 
  (11) परसोनेट (Personate) - जब दोनों ओष्ठ एक द्विओष्ठी (Bilabiate) पुष्प के बिल्कुल जुडे आमने सामने होते हैं  परसोनेट (personate) स्थिति होती है । Example - Acanthaceae family के पौधे ।

Friday, 25 September 2020

पुष्प : एक परिचय ( भाग 6 )

 16 - अनुवाह्यदल ( Epicalyx ) - कभी कभी वाह्यदल पुंज के नीचे वाह्यदलों के समान एक अन्य चक्र भी होता है जिसे अनुवाह्यदल ( Epicalyx ) कहते हैं । उदाहरण - मालवेशी कुल ( Malvaceae family )  ।
 17 - वाह्यदलपुंज की आकृति ( Form of calyx) - 
 1- स्वतन्त्र ( Free ) - example - ( सरसों ) 
 2 - नालवत‌् ( Tubular ) - example -Datura (धतूरा)
 3- घंटाकार ( Bell- shaped or campanulate ) -             examle - गुड़हल ( Hibiscus
  4- कलशाकार ( Urceolate ) - खुरासनी अजवायन                (Hyocyamus niger )में 
   5- द्बिओष्ठी ( Bilabiate - ल्यूकस ( Lucas ) में

Wednesday, 23 September 2020

पुष्प : एक परिचय ( भाग 5 )

14- परिदलपुंज ( Perienth ) - जब वाह्यदल (calyx ) और दल ( corolla ) में विभेद न किया जा सके तो इसे परिदलपुंज ( Perienth ) कहते हैं । इसकी एक unit को परिदल (tepal ) कहते हैं । परिदल पृथक होने पर पुष्प पृथक परिदलीय ( polyphyllous ) तथा जब परिदल संयुक्त होते हैं तो संयुक्त परिदलीय ( gamophyllus ) कहलाता है ।     परिदलपुंज ( Perienth ) रंगीन  होने पर दलाभ (Petaloid) और हरा होने पर वाह्यदलाभ (Sepaloid)  कहलाता है । 
 15- वाह्यदल पुंज ( Calyx ) - यह पुष्प का पहला रक्षक चक्र है । इसकी एक unit को Sepal (वाह्यदल) कहते हैं। जब यह स्वतन्त्र होते हैं तो इन्हें पृथक वाह्यदलीय (polysepalous)  संयुक्त होने पर संयुक्त वाह्यदलीय (Gamosepalous )   कहते हैं । 
 16- दल पुंज ( corolla ) -  यह पुष्प का दूसरा रक्षक चक्र है ।  इसकी एक unit को दल ( Petal )  कहते हैं । जब यह स्वतन्त्र होते हैं तो इन्हें पृथक दलीय ( polypetallous )  , संयुक्त होने पर संयुक्त दलीय (Gamopetallous )   कहते हैं। 

Tuesday, 22 September 2020

पुष्प : एक परिचय ( भाग 4 )

11- पूर्ण ( complete ) - जब पुष्प के चारों चक्र calyx corolla androecium और gynoecium उपस्थित हों तो पुष्प पूर्ण कहलाता है । 
 12 - अपूर्ण ( incomplete ) - जब पुष्प के चारों में से कोई एक चक्र के अनुपस्थित होने पर पुष्प incomplete कहलाता है । 
13 - इम्परफेक्ट ( Imperfect ) - जब पुष्प के आवश्यक अंग पुमंग अथवा जायांग ( androecium or gynoecium ) अनुपस्थित हो तो पुष्प इम्परफेक्ट ( imperfect ) होता है।  A - पुन्केसरी ( staminate ) - जब पुष्प में जायांग (gynoecium) अनुपस्थित होता है । केवल पुमंग (androecium) पाया जाता है तब पुष्प एकलिंगी (unisexual) होता है और पुन्केसरी( staminate ) कहलाता है । उदाहरण - cucurbitaceae कुल के नर पुष्प।
 B - स्त्रीकेसरी (Pistillate) - जब एकलिंगी(unisexual) पुष्प में  केवल जायांग (gynoecium) उपस्थित होता है और पुमंग (androecium) अनुपस्थित होता है । तब पुष्प स्त्रीकेसरी (Pistillate) कहलाता है । उदाहरण - cucurbitaceae कुल के मादा पुष्प ।
 C - नपुंसक ( Neutral ) - जब पुष्प में जायांग(gynoecium) तथा पुमंग (androecium) दोनों ही अनुपस्थित होता है । तब पुष्प नपुंसक ( Neutral ) कहलाता है । 

पुष्प : एक परिचय ( भाग 3)

 8 -  असममित पुष्प (asymmetrical flower ) -यदि पुष्प को किसी भी तल से काटने पर दो बराबर भागों में विभाजित न किया जासके तो पुष्प असममित (asymmetrical ) होता है । उदाहरण - Canna ( कैना ) में । पुष्प को irregular कहते हैं । 
 9- त्रिज्यासममित ( Actinomorphic ) - जब पुष्प को किसी भी तल से काटने पर दो बराबर भागों में बांटा जा सके तो पुष्प त्रिज्यासममित पुष्प कहलाता है । उदाहरण - सरसों , गुलाब आदि । 
 10 - एकव्याससममित पुष्प (Zygomorphic flower)-
जब पुष्प को केवल एक ही तल से काटने पर दो बराबर भागों में विभाजित किया जा सके तब पुष्प एक एकव्याससममित पुष्प  (Zygomorphic flower) कहते हैं । उदाहरण - मटर , तुलसी आदि । 

पुष्प : एक परिचय ( भाग 2 )

 5 - जायांगधर ( Hypogynous flower ) - जब पुंकेसर ( stamen ) , दलपुंज ( corolla ) तथा वाह्यदल ( calyx )  जायांग ( gynoecium ) के नीचे से निकलते हैं तो पुष्प जायांगधर (Hypogynous ) कहलाता है । इस पुष्प में अण्डाशय उर्ध्व (superior ovary ) कहलाता है ।
 6- परिजायांगी पुष्प ( Perigynous flower ) - जब पुंकेसर , दल तथा वाहृय दल प्यालेनुमा पुष्पासन ( thalamus ) के नेमि (rim) पर लगे होते हैं तब अण्डाशय ,  अधो अण्डाशय (semi inferior) कहलाता है  और पुष्प परिजायांगी (Perigynous) कहलाता है । 
  7- जायांगोपरिक (Epigynous flower) - जब  पुंकेसर (stamen ) , दलपुंज ( corolla ) तथा वाह्यदल (calyx )  जायांग (gynoecium ) के ऊपर से निकलते हैं तब अण्डाशय( ovary) , अधोअण्डाशय ( inferior ) होता है और पुष्प जायांगोपरिक (Epigynous flower) कहलाता है । 

Monday, 21 September 2020

पुष्प : एक परिचय (भाग 1)

पुष्प (Flower ) 
 1-  सहपत्र (Bract) : यह पत्ती के समान संरचना है जिसके कक्ष मे पुष्प पाया जाता है । जिन पुष्पो में सहपत्र मिलताा है  उन्हेंं bracteate ( सहपत्री ) कहते हैं तथा जिन पुष्पो में यह नही मिलता  उन्हेंं सहपत्र रहित (ebracteate ) कहते हैं । 
 2- पुष्पवृन्त (Pedicel ) - यह पुुष्प  की डंठल है । जिन पुष्पों में यह उपस्थित होती है उन्हें सवृंती ( pedicellate ) कहते हैं । जिन पुष्पों में यह अनुपस्थित होती है उसे अवृंती (sessile) कहते हैं । 
   3- सहपत्रिका ( Bracteole ) - यह पत्ती के समान संरचना है जो पुष्प वृंत के ऊपर मिलती है । जिन पुष्पों में यह उपस्थित होता है उन्हें सहपत्रिक ( bracteolate ) कहते हैं । जिन पुष्पों‌ में यह अनुपस्थित होता उन्हें सहपत्रिका रहित ( ebractolate ) कहते हैं । 
4 पुष्पासन ( Receptacle अथवा Thalamus ) - यह वृंत ( pedicel ) का शीर्ष भाग है जिस पर पुष्पीय पर्ण़ ( floral leaves ) मिलते हैं । 

Sunday, 20 September 2020

पुष्पक्रम : विशिष्ट प्रारूप ( भाग 6 )

विशेष प्रकार के पुष्प क्रम : 
 यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 
  1- सायथियम ( Cyathium ) - इसमें सहपत्र चक्र बनता है । इस चक्र के सभी सहपत्र आपस में सम्मिलित होकर एक प्याले नुमा संरचना बना लेते हैं । इस संरचना के बीच में एक मादा पुष्प मिलता है जो वृंत पर लगा रहता है जो त्रिअण्पी (tricarpellary ) और युक्ताण्पी ( syncarpous ) होता है इस मादा पुष्प के चारों ओर  नर पुष्प प्रत्येक सा पत्र के सामने एक वृश्चिकी ससीमाक्ष मे लगे रहते हैं केवल नर पुष्प  में एक पुंकेसर पाया जाता है । सभी पुष्प सवृंती होते हैं । प्याले से बाहर की तरफ मकरंद ग्रन्थियां ( nectar gland ) मिलती हैं । यह पुष्पक्रम यूफोरया ( Euphorbia )  वंश का विशेष लक्षण है। 
  2 - कूट चक्रक ( Verticillaster ) - ये opposite पत्ते के  कक्ष में संंघनित दो द्विसाखी ससीमाक्ष अथवा वृश्चिकी ससीमाक्ष होते है यह पुष्प क्रम लेबिएटी( Labiate  ) कुल का विशिष्ट लक्षण है ।
 3- हाइपैन्थोडियम ( Hypanthodium ) - इस पुष्पक्रम मे पुष्पासन मांसल होकर घडे़ के आकार का हो जाता है । इसके मुख पर एक छिद्र होता है जो रोम से ढका रहता है । खोखले पुष्पासन की अन्त: सतह पर पुष्प लगते है जिनमें मादा अथवा नर दोनो प्रकार के एकलिंगी पुष्प होते हैं । अधिकांशतः मादा पुष्प आधार की तरफ तथा नर पुष्प छिद्र की ओर होते हैं ।

Saturday, 19 September 2020

पुष्पक्रम : विभिन्न प्रारूप ( भाग 5 )

2 --ससीमाक्षी पुष्पक्रम - इस प्रकार के पुष्प क्रम का मुख्य अक्ष पुष्प में समाप्त होता है। इसमें पुराने पुष्प ऊपर की ओर तथा नई कलियां नीचे की तरफ लगी होती है इस प्रकार के पुष्प क्रम को बेसिपेटल सक्सेशन ( Basipetal succession ) कहते हैं ये निम्न प्रकार के होते हैं --
  1- एकल (Solitrary ) -- इसमें केवल एक पुष्प लगता है । यह पुष्प अग्रस्थ ( apical or terminal ) अथवा कक्षस्थ ( axilary ) हो सकता है ।
  2- एकल ससीमाक्ष ( Unichasial cyme ) -- इसमें प्रथम अंतस्थ ( terminal )  के नीचे केवल एक पुष्प बनता है यह दो प्रकार का होता है ---
( क) - कुण्डलिनी रूप ( Helicoid unichasium ) - जब एकल शाखी क्रम में पुष्प एक ही तरफ बनते हैं जैसे या तो दाहिनी तरफ या फिर बाईं तरफ , कुण्डलिनी रूप एकल शाखी पुष्पक्रम कहलाता है । 
  (ख) - वृश्चिकी एकलशाखी ( Scorpoid unichasium ) - जब एकल शाखी क्रम में पुष्प एकान्तर दिशाओं में लगते हैं । 
  3- द्विशाखी ससीमाक्ष ( Dichasial cyme ) -- जब पुष्प के नीचे दो पार्श्ववीय ( lateral) पुष्प उत्पन्न होते हैं तो   द्विशाखीससीमाक्ष होता है। 
  4- सिनसिनस ससीमाक्ष ( Cincinous cyme ) -- इस प्रकार के पुष्प क्रम में पहले द्विशाखी ससीमाक्ष मिलता है जो उत्तरोत्तर क्रम में एकलशाखी हो जाता है ।

पुष्प क्रम : विभिन्न प्रारूप (भाग 4 )

5- समशिख ( Corymb ) - इसमें सभी पुष्प एक ही ऊंचाई पर मिलते हैं इसलिए नीचे वाले पुष्पों के पुष्पवृंत लंबे होते हैं तथा ऊपर वाले पुष्पों के पुष्पवृंत छोटे होते हैं ; उदाहरण - 
कैंडी टफ्ट (Iberis )        
  6 -  छत्रक ( Umbel ) - इसमें मुख्य अक्ष संघनित होता है तथा सभी पुष्पों के वृंत एक ही स्थान से निकलते हुए प्रतीत होते हैं। जैसे - धनिया ( Coriandrum ) । 
  7-   मुंडक ( Capitulum ) - इसमें पुष्पक्रम की अक्ष अत्यंत संघनित हो जाती है तथा अवृंत पुष्प ( sessile flower ) सहपत्र चक्र ( involucre of bract ) के द्वारा गिरे रहते हैं ।
  यदि मुंडक के सभी पुष्प समान होते हैं तो वह सम पुष्पी  अथवा homogenous. कहलाता है और यदि मुंडक में दो प्रकार के पुष्प बिंब पुष्पक ( disc florets ) तथा रष्मि पुष्पक ( ray florets ) पाए जाते हैं तो यह विषम पुष्पी ( heterogenous )  कहलाता है । उदाहरण  - सूर्यमुखी (helianthus ) मैं दोनों प्रकार के पुष्प पाए जाते हैं Launea में सम पुष्पी  मुंडक पाया जाता है । 
 जब पुष्प वृंत के नीचे एक छोटी पत्तीनुमा संरचना मिलती है तब वह सहपत्र (bract) कहलाती है पुष्पवृंतो के नीचे यदि सहपत्रों का चक्र मिलता है तो उसे सह  पत्रिकाचक्र ( involucel )  कहते हैं । जब यह चक्र पुष्पावलि वृंत के चारों ओर मिलता है तब इसे सहपत्र चक्र ( involucre ) कहते हैं ।  

पुष्पक्रम : विभिन्न प्रारूप (भाग 1)

आवृतबजी पौधों में जननांग ( reproductive organs ) एक विशेष रूपांतरित प्ररोह पर जिसे पुष्प कहते हैं ,  पुष्प काल आने पर उत्पन्न होते हैं । पुष्पी पौधे पर अकेले अथवा छोटे बड़े समूहों में उत्पन्न होते हैं इसी को पुष्पक्रम कहते हैं ।  पुष्प सामान्यतया शीर्षस्थ या कक्षस्थ कलिका से  बनता है । पुष्प बनाने वाली कलिका  पुष्प कलिका कहलाती है और जिस पत्ती पर कक्ष से पुष्प कलिका निकलती है उसे सहपत्र कहते हैं । ऐसी पुष्प को सहपत्री ( bracteate )और जब सहपत्र नहीं होता तो पुष्प सहपत्र रहित (ebracteate) कहलाता है ।   कई बार शाखा पर सामान्यता एक ही पुष्प  होता है , तो एकल ( solitary) कहलाता है जो स्थिति के अनुसार कक्षस्थ अथवा शीर्षस्थ हो सकता है । अन्यथा एक शाखा पर अनेक पुष्प उत्पन्न होते हैं जब कुछ समूहों में उत्पन्न होते हैं तो पौधे का पुष्प प्रदेश वर्दी प्रदेश से स्पष्ट रूप से अलग पहचाना जाता है। ऐसी अवस्था में किसी पुष्पों का समूह पुष्पक्रम (inflorescence) कहते हैं । शाखा को पुष्पाक्ष अथवा पुष्पावलिवृंत  ( peduncle ) कहते हैं । जब शाखा चपटी या गोल हो जाती है तो यह आशय         ( receptacle ) कहलाती है।          

पुष्प क्रम : विभिन्न प्रारूप ( भाग 3 )

असीमाक्षी पुष्प क्रम के प्रकार - ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं - 1 - असीमाक्ष (receme ) - मुख्य अक्ष लंबा तथा बड़ा होता है और पत्तियों अथवा सहपत्रों ( Bracts ) के कक्षों से पुष्प निकलते हैं , example - मूली , सरसों, Delphinium आदि ।                                                                            2 - स्पाइक ( Spike ) - इसमें वृद्धिशील अक्ष पर अवृंत ( sessile ) पुष्प निकलते हैं example चौलाई , लटजीरा आदि 
 3 -  स्पाइकलेट ( spikelet ) - ये वास्तव में छोटे छोटे स्पाइक होते हैं जिनमें कभी कभी कई तथा कभी कभी केवल एक ही पुष्प होता है । ये आधार की ओर glumes से घिरे रहते हैं । Example जौ , गेहूं , जई आदि ।
  3 - मंजरी ( catkin ) - इसमें अक्ष लंबा तथा pendulous होता है तथा कमजोर पुष्प अक्ष पर एकलिंगी और पंखुड़ी विहीन पुष्प लगे रहते हैं example शहतूत , सेलिक्स आदि। 
  4 - स्थूलमंजरी ( Spadix ) - यह एक प्रकार का एकलिंगी पुष्पों वाला स्पाइक है जिसमें गूदेदार वृंत दो या दो से अधिक बड़े रंगीन निपत्रों ( spathe ) से ढका रहता है example केला , ताड़ आदि । पुष्पावलि वृंत का ऊपरी बंध्य भाग appendix कहलाता है नीचे के भाग में ऊपर की ओर नर पुष्प , मध्य में बंध्य पुष्प तथा नीचे की ओर मादा पुष्प होते हैं  । सभी पुष्प अवृंती होते हैं । Example - अरबी आदि ।

पुष्पक्रम : विभिन्न प्रारूप ( भाग 2 )

पुष्पक्रम चार प्रकार के होते हैं --1 - असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose inflorescence)।     2- ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose inflorescence 3- विशिष्ट पुष्पक्रम ( special inflorescence) 4- संयुक्त पुष्पक्रम ( Compound inflorescence )।                                      1 -असीमाक्षी पुष्पक्रम(Racemose inflorescence) - इस पुष्प क्रम मे पुष्पावलि वृंंत की लंबाई मेंं वृद्धि अनिश्चित काल तक होती रहती है जिसके कारण नीचेेेेे और बाहर की ओर के पुष्प बड़े और पुरानेेे होते हैं तथा अंदर की ओर के पुष्प छोटे और नए होते हैं अर्थात पुष्प पुष्पावलि वृंंत पर अग्राभिसारी क्रम में निकलते हैं ।                                          

न्यूक्लिक एसिड ( Nucleic Acid )

Freidrick Meischer ( 1869 ) ने पस कोशिकाओं में ( रुधिर की श्वेत कोशिकाएं अर्थात श्वेत रुधिर कोशिकाओं - WBCs ) से केंद्र को को पृथक करके एक पदार्थ निकाला जिसमें सल्फर की मात्रा कम परंतु फास्फोरस की मात्रा अधिक थी । इस पदार्थ को उन्होंने "nuclein" नाम दिया । यह प्रोटीन से भिन्न था क्योंकि प्रोटीन में फास्फोरस नहीं होता । अल्टमान (1889) ने केंद्रीय पदार्थ को निकालकर शुद्ध किया और पता लगाया कि इसमें नाइट्रोजनी बेस , शर्कराएं  तथा फास्फोरिक अम्ल होता है इन्हीं  गुणों के कारण उन्होंने इस पदार्थ का नाम न्यूक्लिन के स्थान पर न्यूक्लिक अम्ल  रखा ।                               न्यूक्लिक अम्लों के अणु प्रोटीन अणुओ से भी बड़े और सबसे महत्वपूर्ण जैविक अणु होते हैं । प्रत्येक कोशिका में न्यूक्लिक अम्ल दो प्रकार के होते हैं -   डी ऑक्सी राइबो न्यूक्लिक अम्ल तथा राइबो न्यूक्लिक अम्ल । 

कोशिका की विशेषता

कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cellलैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।[1] १८३९ ई० में श्लाइडेन तथा श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी सजीवों का शरीर एक या एकाधिक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है तथा सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से उपस्थित किसी कोशिका से ही होती है।

सजीवों की सभी जैविक क्रियाएँ कोशिकाओं के भीतर होती हैं। कोशिकाओं के भीतर ही आवश्यक आनुवांशिक सूचनाएँ होती हैं जिनसे कोशिका के कार्यों का नियंत्रण होता है तथा सूचनाएँ अगली पीढ़ी की कोशिकाओं में स्थानान्तरित होती हैं।[2]

कोशिकाओं का विधिवत अध्ययन कोशिका विज्ञान (Cytology) या 'कोशिका जैविकी' (Cell Biology) कहलाता है।

आविष्कार एवं अनुसंधान का इतिहास

  • रॉबर्ट हुक ने 1665 में बोतल की कार्क की एक पतली परत के अध्ययन के आधार पर मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशा नाम दिया। यह तथ्य उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफिया में छपा। राबर्ट हुक ने कोशा-भित्तियों के आधार पर कोशा शब्द प्रयोग किया।

उन्होंने जीवित कोशिका को दाँत की खुरचनी में देखा था ।

  • 1831 में रॉबर्ट ब्राउन ने कोशिका में 'केंद्रक एवं केंद्रिका' का पता लगाया।
  • तदरोचित नामक वैज्ञानिक ने 1824 में कोशिका सिद्धांत (cell theory) का विचार प्रस्तुत किया, परन्तु इसका श्रेय वनस्पति-विज्ञान-शास्त्री श्लाइडेन (Matthias Jakob Schleiden) और जन्तु-विज्ञान-शास्त्री श्वान (Theodor Schwann) को दिया जाता है जिन्होंने ठीक प्रकार से कोशिका सिद्धांत को (1839 में) प्रस्तुत किया और बतलाया कि 'कोशिकाएं पौधों तथा जन्तुओं की रचनात्मक इकाई हैं।'
  • 1953: वाट्सन और क्रिक (Watson and Crick) ने डीएनए के 'डबल-हेलिक्स संरचना' की पहली बार घोषणा की।
  • 1981: लिन मार्गुलिस (Lynn Margulis) ने कोशिका क्रम विकास में 'सिबियोस' (Symbiosis in Cell Evolution) पर शोधपत्र प्रस्तुत किया।
  • 1888: में वाल्डेयर (Waldeyer) ने गुणसूत्र (Chromosome) का नामकरण किया ।
  • 1883: ईमें स्विम्पर (ने पर्णहरित (Chloroplast) Schimper) का नामकरण किया ।
  • 1892: में वीजमैन (Weissman) ने सोमेटोप्लाज्म (Somatoplasm) एवं जर्मप्लाज्म (Germplasm) के बीच अंतर स्पष्ट किया।
  • 1955: में जी.इ पैलेड (G.E. Palade) ने राइबोसोम (Ribosome) की खोज की। [3]

Cell - Structure And Function ( कोशिका संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई )

The cell is a unit of structure & vital activities of living organism which is surrounded by a semipermeable membrane. It has a morphological, chemical , physical organisation which enables it to assimilate , grow & reproduce. 

बीज क्या है ? ( What is seed ? )

आवृतजीवी पौधों में बीज (seed) फल (fruit) के अन्दर बनने वाली वह विशेष संरचना है जो बीजान्ड  ( ovule ) के निषेचन (fertilization) क...